हरित क्रांति
1960 के दशक के आरम्भिक चरण में कूषि में कुछ नए तकनीको की शुरआत की गई, जो विश्वभर में हरित क्रांति के नाम से प्रसिद्व हुयी । इन तकनीको का प्रयोग पहले गेहॅू की खेती पर तथा दूसरे दशक में धान की खेती के लिए किया गया । इन तकनीको के द्वारा खाद्यान्न उत्पादन में क्रांति आई तथा उत्पादकता स्तर में 250% तक की बढोत्तरी हुई । हरित क्रांति के पीछे सबसे बडा हाथ जर्मन कूषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग का था जो 1960 के दशक में मैक्सिको में अनुसंधान किया । भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में कूषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को कहा जाता है ।
हरित क्रांति के घटक जो निम्नलिखित है-
हरित क्रांति का सभी देशों में सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो प्रकार से प्रभाव पडा जो निम्नलिखित है-1960 के दशक के आरम्भिक चरण में कूषि में कुछ नए तकनीको की शुरआत की गई, जो विश्वभर में हरित क्रांति के नाम से प्रसिद्व हुयी । इन तकनीको का प्रयोग पहले गेहॅू की खेती पर तथा दूसरे दशक में धान की खेती के लिए किया गया । इन तकनीको के द्वारा खाद्यान्न उत्पादन में क्रांति आई तथा उत्पादकता स्तर में 250% तक की बढोत्तरी हुई । हरित क्रांति के पीछे सबसे बडा हाथ जर्मन कूषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग का था जो 1960 के दशक में मैक्सिको में अनुसंधान किया । भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में कूषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को कहा जाता है ।
हरित क्रांति के घटक जो निम्नलिखित है-
- उन्नत किस्म के बीज- हरित क्रांति में जिन बीजो का प्रयोग किया गया उन्हें बौनी किस्म का बीज कहा जाता है । उन बीजो से उत्पादन अधिक होता है दूसरे बीजो के मुकाबले ।ये बीज प्रकाश संश्लेषण रहित थे ।
- रासायनिक उर्वरक - इन उन्नत बीजो की उत्पादकता तभी बढाया जा सकता था जब इन्हें उचित पोषक तत्व मिले अर्थात रासायनिक उर्वरक जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश की सामुचित आपूर्ति कि जाए । इन बीजो पर परंपरागत वानस्पतिक खाद पर्याप्त नही थी ।
- सिचाई- उर्वरको को घोलने तथा फसलों के नियमित विकास के लिए समयानुसार सिंचाई आवश्यक होती है । इन बीजो को अन्य बीजो की तुलना में ज्यादा सिंचाई की जरूरत पडती है ।
- रासायनिक कीटनाशक तथा जीवाणुनाशी- नए बीज वर्तमान देशज किस्मों की अपेक्षा स्थानीय कीडों तथा बीमारियो से कम सुरक्षित थे । इसलिए कीटनाशक व जीवाणुनाशी का उपयोग अच्छी उपज के लिए आवश्यक है ।
- रासायनिक खरपतवारनाशक तथा अपतूणनाशक- इसका उपयोग इसलिए आवश्यक है क्येंकि महॅगे उर्वरको की खरपतवार तथा अपूत खपत न कर सके ।
- साख, भंडारण, विपणन और वितरण- किसान हरित क्रांति के महॅगे आगत का उपयोग कर सके इसलिए उन्हें सस्ते ऋण की आवश्यकता थी । जिन क्षेत्रों में नए किश्म के बीजो को लाया गया वहां इन सभी चीजो की आवश्यकता थी । भारत में हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि में सभी चीजो की व्यवस्था की गई या व्यवस्था थी ।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव- खाद्यान्न के उत्पादन में बढोत्तरी हुई तथा देश कई खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया एवं कुछ खाद्यान्नों को निर्यात भी करने लगा । हरित क्रांति के कारण किसानों की आय में बढोत्तरी भी हुई । किन्तु हरित क्रान्ति से फसल असन्तुलन भी देखने को मिलता है जैसे गेहूॅ एवं चावल का अधिक उत्पादन हआ वही दलहन,तिलहन ,मक्का,जौ इत्यादि का उत्पादन घटा है । इसके अतिरिक्त जलजमाव के कारण मलेरिया से पीडित व्यक्तियों की संख्या में बढोत्तरी हुई ।
- निम्नीकूत मिट्टी उर्वरता- बार-बार एक ही फसल पद्वति के कारण मिट्टी की उर्वरता लगातार नष्ट हो रही थी या हांस हो रहा था ।
- जल स्तर का घटना- हरित क्राति के प्रदेशो में जल स्तर तीव्र गति से घटता जा रहा था क्योंकि परंपरागत बीजो की तुलना में HYV बीज सिचाई के लिए कई गुना अधिक जल का प्रयोग करते है जैसे 1 किलो चावल के लिए 5 टन जल की आवश्यकता होती है ।
- रासायनिक उर्वरको, कीटनाशको एवं खरपतवारनाशको के अत्यधिक प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है । बरसात के दिनों में ये रासायनिक उर्वरक व कीटनाशी बहकर नदीयों में मिलते है जिससे जल प्रदूषण फैलता है । इस तरह के रासायनो के प्रयोग से बरसात के दिनों में ज्यादा खरपतवार उगते है और उन्हें जहरीले खरपतवार को पशओं के द्वारा खा कर बिमार पड जाते है जिसका मनुष्य के ऊपर भी प्रभाव पडता है ।
- खाद्य श्रूंखला में विष का स्तर- भारत की खाद्य श्रूंखला में विष का स्तर अधिक हो गया है तथा यहॉ उत्पादित कोई भी खाद्य-सामग्री मानव उपभोग के लायक नही रही है । क्योंकि रासायनिको के ज्यादा प्रयोग से भूमि,जल तथा वायु प्रदूषण में बढोत्तरी हुई है तथा पूरी खाद्य श्रूंखला में अधिक विषाक्ततता फैल गई है ।
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