विश्व व्यापार संगठन एक बहुपक्षीय संगठन है जो विश्व के विभिन्न देशों के मध्य वस्तुओ एवं सेवाअों के मुक्त व्यापार की सुविधा एवं निष्पक्ष व्यापार को बढावा प्रदान करता है । वर्तमान में यह 164 सदस्य देशों का संगठन है, जो वस्तुओ एवं सेवाओं के आयात-निर्यात को सरल बनाते है । WTO का प्रमुख उदेेेश्य विश्व आय को व्यापार के जरिए बढावा एवं सदस्य देशों के समृद्व के स्तर को ऊॅचा उठाना है । WTO जनवरी एक 1995 को अस्तित्व में आया । WTO पूर्ववती तटकर एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (Genral agreement on tariff and trade)का ही नया रूप है,जिसे गैट से अधिक शक्तिया एवं कार्य सौपे गए । गैट की स्थापना 1948 में अंतिम व्यापार वार्ता उरूग्वे दौर थी, जिससे विश्व व्यापार की स्थापना हुई ।
WTO के उदेश्य
Wto का उदेश्य विश्व व्यापार को मुक्त सरल एवं निष्पक्ष बनाना है । इन उदेश्यों को प्राप्त करने हेतु विश्व व्यापार ने कुछ कार्य सुनिश्चित किए है-
- WTO ने कुछ समझौते के प्रशासक के रूप में ।
- व्यापारिक बातचीत के लिए फोरम के रूप में ।
- व्यापारिक मतभेदों को सम्भालना एवं हल करना ।
- राष्ट्रीय व्यापारिक नीतियों में परिवर्तन एवं उन्हें सुचारू रूप से लागू करना ।
- सदस्य देशों की व्यापारिक नीतियों को तकनीकी एवं ट्रेनिग कार्यक्रमों की सहायता से सुचारू बनाना ।
- विकासशील देशों को तकनीकी एवं कुशल सहायता मुहैया करना ।
- अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के मध्य समन्वय स्थापित करन ।
WTO के कुछ सिद्वांत है -
विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत लगभग सभी तरह की वस्तुओं,सेवाओं एवं कृषि संबंधित वस्तुओं के व्यापारी समझौतों को शामिल किया जाता है -
- गैर विभेदात्मक- इस सिद्वांत की मूल धारणा most favoured nation की रही है जिसमें यह कहा गया है कि अगर कोई देश अन्य देश में उत्पादित किसी भी वस्तु पर कोई लाभ,समर्थन या सुविधा प्रदान करता है तो यह लाभ, समर्थन या सुविधा स्वतः और तुरन्त इस वस्तु के उत्पादक अन्य सभी सदस्य देशों को बिना शर्त प्राप्त हो जाएगी ।
- परस्परता- इस सिद्वांत के अनुसार एक देश द्वारा दी गई छूट सुविधा दूसरे देश को समान रूप से मिलनी चाहिए ताकि उनके भुगतानों से ज्यादा अन्तर न हो सके । यह सुविधा उन विकासशील देशों को भी मिलनी चाहिए जो भुगतान संतुलन के संकट का सामना कर रहे है ।
- पारदर्शीता- इस सिद्वांत के अनुसार सभी सदस्य देशों में लागू घरेलू व्यापार नीतियों में पारदर्शिता होनी चाहिए । जिससे बाजार में प्रतियोगिता के वातावरण को बढावा मिल सके ।
WTO और भारत
भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य देश है तथा विकासशील देशों के समूह को प्रस्तुत करता है, इसलिए कुछ प्रमुख समझौते जो कि भारत द्घारा हस्ताक्षरित किए गए है-
- टैरिफ एवं नान टैरिफ अवरोधों में कमी- इस समझौते के अंतर्गत विनिर्माण वस्तुओं के संदर्भ में ऊॅची टैरिफ दरों को समन्वय तरीके से कम किया जाए तथा परिणामात्मक प्रतिबंधों को हटा लिया जाए, जिससे दीर्घकाल में प्रतियोगी वातावरण विश्व व्यापार में स्थापित हो सके ।
- व्यापार संबंध निवेश उपाय- इस समझौते के अनुसार मेजबान देश को विदेशी निवेश एवं घरेलू निवेश की विभेदात्मक नीतियों को दूर करना चाहिए अर्थात सभी देशों के मध्य मुक्त् विदेशी निवेश नीतियों का पालन होना चाहिए ।
- व्यापार संबंध बौधिक (TRIPS)- भारत के दृष्टिकोण से अत्यन्त चिन्ता का विषय वाला क्षेत्र है । उरूग्वे दौर मे विकसित देशों ने इन अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कडी शर्तों को विकासशील देशों पर थोपा है । इसका उद्वेश्य विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ पहुॅचाना है । भारत के 1970 पेटेंट एक्ट के आधीन औषधियो पर केवल प्रक्रिया पेटेंट लेने की जरूरत होती थी,अर्थात किसी भी भारतीय कम्पनी के लिए केवल इतना काफी था कि वह कोई औषधि बनाने की अपनी प्रक्रिया या रीति विकसित करे और फिर उस पर पेटेंट ले ले । फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादन वही कंपनीयॉ कर पाएगी जिन्हें उनका उत्पाद पेटेंट प्राप्त् हो, क्योंकि उत्पाद पेटेंट अधिकार विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है इसलिए इसका अर्थ यह है कि यही कम्पनीयॉ उत्पाद पेटेंट वाली औषधियो का उत्पादन कर सकेगी फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादक इकाईयों काे गहरा झटका लगेगा तथा बहुत सी महत्वपूर्ण दवाईयों की कीमते बढ जाएगी और गरीब आदमी की पहुॅच से औषघियॉ बाहर हो जाएगी, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिेेकूल प्रभाव पडेगा ।
- कृषि पर- इस समझौते के अंतर्गत सभी सदस्य देशों को बाजार पहुॅच,निर्यात सहायता,सरकारी सहायता को कृषि वस्तुओं के संदर्भ में कम करना होगा ताकि विश्व व्यापार मुक्त एवं प्रतियोगी वातावरण में आगे बढ सके, जिसके फलस्वरूप भारतीय कृषि वस्तुओं को विदेशी बाजार प्राप्त हो सके एवं वस्तुअों की गुणवक्ता बढ सके ।
5.
बहु फाईबर- WTO के विशेषज्ञों का मानना है कि 1 जनवरी 2005 में बहु फाईबर समझौते के समाप्त होने से विकासशील देशों को बहुत लाभ मिलेगा, क्योंकि भारत कपडों का काफी निर्यात करता है, जिससे उसे विकसित देशों का एक बडा बाजार मिल जायेगा, परंतु भारत को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा । इसलिए भारत को अन्य देशों जैसे चीन, वियतनाम, पाकिस्तान,बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि के वस्त्रा उद्योगो की तुलना में उत्पाद की किश्म या गुणवत्ता एवं लागत को प्रतियोगी बनाना होगा । संभवतः कोट मुक्त वातावरण में सबसे अधिक लाभ चीन को मिलेगा, क्योंकि वह अपेक्षाकृत अधिक प्रतियोगी है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में WTO के अन्तर्गत यह उम्मीद की जाती है कि वस्त्र उद्योग, चपडा क्षेत्र, टेक्सटाइल क्षेत्र, खाद्य क्षेत्र, पेय एवं तम्बाकू आदि क्षेत्रों में उत्पादन एवं निर्यात विकास की प्रचुर संभावनाऍ निहित है । हालाकि बदलते वातावरण में जिसमें प्रतियोगी एवं मुक्त बाजार में हमें नई चुनौतियों को पारदर्शीता से तथा विकासशील देशों के संदर्भ में पुनः विचार करते हुए गम्भीरता से दृष्टि डालने की आवश्यकता है ।