Monday, 24 April 2017

नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक

             नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक



   Qus. नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक के नियुक्ति, कार्यकाल एवं स्वतंत्रता की सुरक्षा हेतु कौन-कौन से संवैधानिक प्रावधान किये गए है ।
  Ans. संविधान के अनुच्छेद 148 में सीएजी की व्यवस्था की गई है । वह लोक वित्त का संरक्षक होता है  इसका नियत्रंण केन्द्र एवं राज्य दोनो स्तरों पर होता है । इसका कर्तव्य होता होता है कि वह भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले ।
            सीएजी की नियुक्त् राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । सीएजी का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु या 6 वर्ष (जो भी पहले हो) तक होता है ।इससे पहले भी राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है । सीएजी को संसद के दोनो सदनों द्वारा विशेष बहुमत या 2/3 बहुमत के साथ उसके अयोग्यता पर प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपत के द्वारा हटाया जा सकता है ।  
             सीएजी  की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संविधान ने निम्न व्यवस्था की गई है-
  1. इसे कार्यकाल की सुरक्षा मुहैया कराई गई है ।इसे केवल राष्ट्रपति संविधान में उल्लेखित कार्यवाही के जरिए  ही हटाया जा सकता है । इस तरह यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत पर नही बल्कि राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किया जाता है ।  
  2. सीएजी अपना पद  छोडने  के बाद अन्य पद चाहे केन्द्र सरकार का हो या राज्य सरकार का ,ग्रहण नही कर सकता है । 
  3. इसके वेतन एवं अन्य सेवा शर्ते संसद द्वारा निर्धारित होती है । वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के बराबर होता है । 
  4. इसके वेतन, छुट्टी, पेशन या निवृत्ति की आयु संबंधी अधिकारों में उसकी नियुक्त् के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नही किया जाएगा ।
  5. सीएजी के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को वेतन एवं भत्ते भारत की संचित नीधि  पर भारित होगे । इस पर संसद पर मतदान नही कर सकते ।
  6. कोई भी मंत्री ,संसद के दोनो सदनों सीएजी का प्रतिनिधित्व नही कर सकता है और कोई मंत्री उसके द्वारा किए गए किसी कार्या की जिम्मेदारी नही ले सकता है । 
                इस तरह संविधान में कैंग का स्वतंत्र बनाया गया है जिससे वह स्वतंत्रतापूर्वक कार्य कर सके ।


नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण

नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण
  


Qus. नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण की भूमिका एवं सीमाऍ को वर्णित किजिए ।
 Ans.  भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 में एक नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण का प्रावधान है  जो लोक वित्त का संरक्षक होता है । सीएजी सरकारी खर्चो का लेखा परीक्षण करता है । सीएजी का कर्तव्य होता है कि भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले ।

                 सीएजी सरकारी व्यय की तर्कसंगतता, निष्ठा और मितव्ययता की भी जॉच करता है अर्थात वह किसी ऐसे खर्चे को अस्वीकार कर सकता है जो कि उसके विचार में संविधान अथवा कानून का उल्लंघन करता है । सीएजी का भारत की संचित नीधि से धन की निकासी पर कोई नियत्रंण नही है और उनके विभाग कैग के प्राधिकार के बिना चैक जारी  कर धन की निकासी कर सकता है, कैग की भूमिका व्यय होने के बाद केवल लेखा परीक्षण अवस्था में है ।
                 नियत्रंण एवं महालेखा परीक्षण की भूमिका को सीमित भी किया गया है- 
  1. गुप्त सेवा व्यय कैग की लेखा परीक्षा की भूमिका पर सीमाऍ निर्धारित करता है । इस संबंध में कैग कार्यकारी एजेन्सियो द्वारा किए गए व्यय के ब्यौरे नही मांग सकता, किन्तु प्रशासनिक अधिकारी से प्रमाण पत्र स्वीकार करना होगा कि व्यय प्राधिकार के अंर्तगत किया गया है । 
  2. सार्वजनिक निगमों की लेखा-परीक्षक की भूमिका भी सीमित है वह कुछ निगमों की लेखा परीक्षण निजी पेशेवर लेखा परीक्षण के द्वारा की जाती है जो कि सीएजी की सलाह पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है । जैसे केन्द्रीय भंडार निगम, औघौगिक वित्त निगम एवं अन्य ।
  3. कुछ अन्य निगमों की पूरी तरह निजी लेखा परीक्षण की जाती है तथा इसमें कैंग की कोई भूमिका नही होती है । वे अपना वार्षीक प्रतिवेदन तथा लेखा सीधे संसद को प्रस्तुत करती है । उदा. के लिए- जीवन बीमा निगम, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय खाद्य निगम आदि ।
  4. सरकारी कम्पनियों की लेखा परीक्षा में सीएजी की भूमिका सीमित है उनकी लेखा परीक्षा निजी अंकेक्षको द्वारा की जाती है जो कि सीएजी की सलाह पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते है । सीएजी इनकी पूरक लेेखा परीक्षा कर सकती है ।
                कुछ निगमों की लेखा परीक्षा पूरी तरह एवं प्रत्यक्ष तौर पर सीएजी के द्वारा ही की जाती है । जैसे- दमोदर घाटी निगम, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस एवं अन्य । इस तरह संविधान ने जहॉ सीएजी की लेखा संबंधी अधिकार दिये है तो कही-कही सीमित भी किए है किन्तु कैग अपनी भूमिका पूरी तरह से निभा रहा है जैसे वर्तमान में 2G,कोल आबंटन, कॉमनवेल्थ गेम आदि में किए गये घोटालों से पर्दापाश किये है इससे कैंग की भूमिका पर संदेह नही किया जा सकता है ।
            

     

Tuesday, 4 April 2017

विश्व व्यापार संगठन








 







विश्व व्यापार संगठन एक बहुपक्षीय संगठन है जो विश्व के विभिन्न देशों के मध्य वस्तुओ एवं सेवाअों के मुक्त व्यापार की सुविधा एवं निष्पक्ष व्यापार को बढावा प्रदान करता है । वर्तमान में यह 164 सदस्य देशों का संगठन है, जो वस्तुओ एवं सेवाओं के आयात-निर्यात को सरल बनाते है । WTO का प्रमुख उदेेेश्य विश्व आय को व्यापार के जरिए बढावा एवं सदस्य देशों के समृद्व के स्तर को ऊॅचा उठाना है । WTO जनवरी एक 1995 को अस्तित्व में आया । WTO पूर्ववती तटकर एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (Genral agreement on tariff and trade)का ही नया रूप है,जिसे गैट से अधिक शक्तिया एवं कार्य सौपे गए । गैट की स्थापना 1948 में अंतिम व्यापार वार्ता उरूग्वे दौर थी, जिससे विश्व व्यापार  की स्थापना हुई ।

WTO के उदेश्य
   Wto का उदेश्य विश्व व्यापार को मुक्त सरल एवं निष्पक्ष बनाना है । इन उदेश्यों को प्राप्त करने हेतु विश्व व्यापार ने कुछ कार्य सुनिश्चित किए है-
  1. WTO ने कुछ समझौते के प्रशासक के रूप में ।
  2. व्यापारिक बातचीत के लिए फोरम के रूप में ।
  3. व्यापारिक मतभेदों को सम्भालना एवं हल करना  ।
  4. राष्ट्रीय व्यापारिक नीतियों में परिवर्तन एवं उन्हें सुचारू रूप से लागू करना ।
  5. सदस्य देशों की व्यापारिक नीतियों को तकनीकी एवं ट्रेनिग कार्यक्रमों की सहायता से सुचारू बनाना ।
  6. विकासशील देशों को तकनीकी एवं कुशल सहायता मुहैया करना ।
  7. अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के मध्य समन्वय स्थापित करन ।
  
WTO के कुछ सिद्वांत है -
  विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत लगभग सभी तरह की वस्तुओं,सेवाओं एवं कृषि संबंधित वस्तुओं के व्यापारी समझौतों को शामिल किया जाता है -
  • गैर विभेदात्मक- इस सिद्वांत की मूल धारणा most favoured nation की रही है जिसमें यह कहा गया है कि अगर कोई देश अन्य देश में उत्पादित किसी भी वस्तु पर कोई लाभ,समर्थन या सुविधा प्रदान करता है तो यह लाभ, समर्थन या सुविधा स्वतः और तुरन्त इस वस्तु के उत्पादक अन्य सभी सदस्य देशों को बिना शर्त प्राप्त हो जाएगी । 
  • परस्परता- इस सिद्वांत के अनुसार एक देश द्वारा दी गई छूट सुविधा दूसरे देश को समान रूप से मिलनी चाहिए ताकि उनके भुगतानों से ज्यादा अन्तर न हो सके । यह सुविधा उन विकासशील देशों को भी मिलनी चाहिए जो भुगतान संतुलन के संकट का सामना कर रहे है । 
  • पारदर्शीता- इस सिद्वांत के अनुसार सभी सदस्य देशों में लागू घरेलू व्यापार नीतियों में पारदर्शिता होनी चाहिए । जिससे बाजार में प्रतियोगिता के वातावरण को बढावा मिल सके ।
  WTO और भारत
भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य देश है तथा विकासशील देशों के समूह को प्रस्तुत करता है, इसलिए कुछ प्रमुख समझौते जो कि भारत द्घारा हस्ताक्षरित किए गए है-
  1. टैरिफ एवं नान टैरिफ अवरोधों में कमी- इस समझौते के अंतर्गत विनिर्माण वस्तुओं के संदर्भ में ऊॅची टैरिफ दरों को समन्वय तरीके से कम किया जाए तथा परिणामात्मक प्रतिबंधों को हटा लिया जाए, जिससे दीर्घकाल में प्रतियोगी वातावरण विश्व  व्यापार में स्थापित हो सके । 
  2. व्यापार संबंध निवेश उपाय- इस समझौते के अनुसार मेजबान देश को विदेशी निवेश एवं घरेलू निवेश की विभेदात्मक नीतियों को दूर करना चाहिए अर्थात सभी देशों के मध्य मुक्त् विदेशी निवेश नीतियों का पालन होना चाहिए ।
  3. व्यापार संबंध बौधिक (TRIPS)- भारत के दृष्टिकोण से अत्यन्त चिन्ता का विषय वाला क्षेत्र है । उरूग्वे दौर मे विकसित देशों ने इन अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कडी शर्तों  को विकासशील देशों पर थोपा है । इसका उद्वेश्य विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को  लाभ पहुॅचाना है । भारत के 1970 पेटेंट एक्ट के आधीन औषधियो पर केवल प्रक्रिया पेटेंट लेने की जरूरत होती थी,अर्थात किसी भी भारतीय कम्पनी के लिए केवल इतना काफी था कि वह कोई औषधि बनाने की अपनी प्रक्रिया या रीति विकसित करे और फिर उस पर पेटेंट ले ले । फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादन वही कंपनीयॉ कर पाएगी जिन्हें उनका उत्पाद पेटेंट प्राप्त् हो, क्योंकि उत्पाद पेटेंट अधिकार विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है इसलिए इसका अर्थ यह है कि यही कम्पनीयॉ उत्पाद पेटेंट वाली औषधियो का उत्पादन कर सकेगी फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादक इकाईयों काे गहरा झटका लगेगा तथा बहुत सी महत्वपूर्ण दवाईयों की कीमते बढ जाएगी और गरीब आदमी की पहुॅच से औषघियॉ बाहर हो जाएगी, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिेेकूल प्रभाव पडेगा ।
  4. कृषि पर- इस समझौते के अंतर्गत सभी सदस्य देशों को बाजार पहुॅच,निर्यात सहायता,सरकारी सहायता को कृषि वस्तुओं के संदर्भ में कम करना होगा ताकि विश्व व्यापार मुक्त एवं प्रतियोगी वातावरण में आगे बढ सके, जिसके फलस्वरूप भारतीय कृषि वस्तुओं को विदेशी बाजार प्राप्त हो सके एवं वस्तुअों की गुणवक्ता बढ सके ।
     5.बहु फाईबर- WTO के विशेषज्ञों का मानना है कि 1 जनवरी 2005 में बहु फाईबर समझौते के समाप्त होने से विकासशील देशों को बहुत लाभ मिलेगा, क्योंकि भारत कपडों का काफी निर्यात करता है, जिससे उसे विकसित देशों का एक बडा बाजार मिल जायेगा, परंतु भारत को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा  । इसलिए भारत को अन्य देशों जैसे चीन, वियतनाम, पाकिस्तान,बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि के वस्त्रा उद्योगो की तुलना में उत्पाद की किश्म या गुणवत्ता एवं लागत को प्रतियोगी बनाना होगा । संभवतः कोट मुक्त वातावरण में सबसे अधिक लाभ चीन को मिलेगा, क्योंकि वह अपेक्षाकृत अधिक प्रतियोगी है।


           भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में WTO के अन्तर्गत यह उम्मीद की जाती है कि वस्त्र उद्योग, चपडा क्षेत्र, टेक्सटाइल क्षेत्र, खाद्य क्षेत्र, पेय एवं तम्बाकू आदि क्षेत्रों में उत्पादन एवं निर्यात विकास की प्रचुर संभावनाऍ निहित है । हालाकि बदलते वातावरण में जिसमें प्रतियोगी एवं मुक्त बाजार में हमें नई चुनौतियों को पारदर्शीता से तथा विकासशील देशों के संदर्भ में पुनः विचार करते हुए गम्भीरता से दृष्टि डालने की आवश्यकता है ।