Monday, 24 April 2017

नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक

             नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक



   Qus. नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक के नियुक्ति, कार्यकाल एवं स्वतंत्रता की सुरक्षा हेतु कौन-कौन से संवैधानिक प्रावधान किये गए है ।
  Ans. संविधान के अनुच्छेद 148 में सीएजी की व्यवस्था की गई है । वह लोक वित्त का संरक्षक होता है  इसका नियत्रंण केन्द्र एवं राज्य दोनो स्तरों पर होता है । इसका कर्तव्य होता होता है कि वह भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले ।
            सीएजी की नियुक्त् राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । सीएजी का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु या 6 वर्ष (जो भी पहले हो) तक होता है ।इससे पहले भी राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है । सीएजी को संसद के दोनो सदनों द्वारा विशेष बहुमत या 2/3 बहुमत के साथ उसके अयोग्यता पर प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपत के द्वारा हटाया जा सकता है ।  
             सीएजी  की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संविधान ने निम्न व्यवस्था की गई है-
  1. इसे कार्यकाल की सुरक्षा मुहैया कराई गई है ।इसे केवल राष्ट्रपति संविधान में उल्लेखित कार्यवाही के जरिए  ही हटाया जा सकता है । इस तरह यह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यत पर नही बल्कि राष्ट्रपति के द्वारा नियुक्त किया जाता है ।  
  2. सीएजी अपना पद  छोडने  के बाद अन्य पद चाहे केन्द्र सरकार का हो या राज्य सरकार का ,ग्रहण नही कर सकता है । 
  3. इसके वेतन एवं अन्य सेवा शर्ते संसद द्वारा निर्धारित होती है । वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के बराबर होता है । 
  4. इसके वेतन, छुट्टी, पेशन या निवृत्ति की आयु संबंधी अधिकारों में उसकी नियुक्त् के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नही किया जाएगा ।
  5. सीएजी के कार्यालय के प्रशासनिक व्यय, जिसके अंतर्गत उस कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों को वेतन एवं भत्ते भारत की संचित नीधि  पर भारित होगे । इस पर संसद पर मतदान नही कर सकते ।
  6. कोई भी मंत्री ,संसद के दोनो सदनों सीएजी का प्रतिनिधित्व नही कर सकता है और कोई मंत्री उसके द्वारा किए गए किसी कार्या की जिम्मेदारी नही ले सकता है । 
                इस तरह संविधान में कैंग का स्वतंत्र बनाया गया है जिससे वह स्वतंत्रतापूर्वक कार्य कर सके ।


नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण

नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण
  


Qus. नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण की भूमिका एवं सीमाऍ को वर्णित किजिए ।
 Ans.  भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 में एक नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षण का प्रावधान है  जो लोक वित्त का संरक्षक होता है । सीएजी सरकारी खर्चो का लेखा परीक्षण करता है । सीएजी का कर्तव्य होता है कि भारत के संविधान एवं संसद की विधि के तहत वित्तीय प्रशासन को संभाले ।

                 सीएजी सरकारी व्यय की तर्कसंगतता, निष्ठा और मितव्ययता की भी जॉच करता है अर्थात वह किसी ऐसे खर्चे को अस्वीकार कर सकता है जो कि उसके विचार में संविधान अथवा कानून का उल्लंघन करता है । सीएजी का भारत की संचित नीधि से धन की निकासी पर कोई नियत्रंण नही है और उनके विभाग कैग के प्राधिकार के बिना चैक जारी  कर धन की निकासी कर सकता है, कैग की भूमिका व्यय होने के बाद केवल लेखा परीक्षण अवस्था में है ।
                 नियत्रंण एवं महालेखा परीक्षण की भूमिका को सीमित भी किया गया है- 
  1. गुप्त सेवा व्यय कैग की लेखा परीक्षा की भूमिका पर सीमाऍ निर्धारित करता है । इस संबंध में कैग कार्यकारी एजेन्सियो द्वारा किए गए व्यय के ब्यौरे नही मांग सकता, किन्तु प्रशासनिक अधिकारी से प्रमाण पत्र स्वीकार करना होगा कि व्यय प्राधिकार के अंर्तगत किया गया है । 
  2. सार्वजनिक निगमों की लेखा-परीक्षक की भूमिका भी सीमित है वह कुछ निगमों की लेखा परीक्षण निजी पेशेवर लेखा परीक्षण के द्वारा की जाती है जो कि सीएजी की सलाह पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है । जैसे केन्द्रीय भंडार निगम, औघौगिक वित्त निगम एवं अन्य ।
  3. कुछ अन्य निगमों की पूरी तरह निजी लेखा परीक्षण की जाती है तथा इसमें कैंग की कोई भूमिका नही होती है । वे अपना वार्षीक प्रतिवेदन तथा लेखा सीधे संसद को प्रस्तुत करती है । उदा. के लिए- जीवन बीमा निगम, भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, भारतीय खाद्य निगम आदि ।
  4. सरकारी कम्पनियों की लेखा परीक्षा में सीएजी की भूमिका सीमित है उनकी लेखा परीक्षा निजी अंकेक्षको द्वारा की जाती है जो कि सीएजी की सलाह पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते है । सीएजी इनकी पूरक लेेखा परीक्षा कर सकती है ।
                कुछ निगमों की लेखा परीक्षा पूरी तरह एवं प्रत्यक्ष तौर पर सीएजी के द्वारा ही की जाती है । जैसे- दमोदर घाटी निगम, तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस एवं अन्य । इस तरह संविधान ने जहॉ सीएजी की लेखा संबंधी अधिकार दिये है तो कही-कही सीमित भी किए है किन्तु कैग अपनी भूमिका पूरी तरह से निभा रहा है जैसे वर्तमान में 2G,कोल आबंटन, कॉमनवेल्थ गेम आदि में किए गये घोटालों से पर्दापाश किये है इससे कैंग की भूमिका पर संदेह नही किया जा सकता है ।
            

     

Tuesday, 4 April 2017

विश्व व्यापार संगठन








 







विश्व व्यापार संगठन एक बहुपक्षीय संगठन है जो विश्व के विभिन्न देशों के मध्य वस्तुओ एवं सेवाअों के मुक्त व्यापार की सुविधा एवं निष्पक्ष व्यापार को बढावा प्रदान करता है । वर्तमान में यह 164 सदस्य देशों का संगठन है, जो वस्तुओ एवं सेवाओं के आयात-निर्यात को सरल बनाते है । WTO का प्रमुख उदेेेश्य विश्व आय को व्यापार के जरिए बढावा एवं सदस्य देशों के समृद्व के स्तर को ऊॅचा उठाना है । WTO जनवरी एक 1995 को अस्तित्व में आया । WTO पूर्ववती तटकर एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (Genral agreement on tariff and trade)का ही नया रूप है,जिसे गैट से अधिक शक्तिया एवं कार्य सौपे गए । गैट की स्थापना 1948 में अंतिम व्यापार वार्ता उरूग्वे दौर थी, जिससे विश्व व्यापार  की स्थापना हुई ।

WTO के उदेश्य
   Wto का उदेश्य विश्व व्यापार को मुक्त सरल एवं निष्पक्ष बनाना है । इन उदेश्यों को प्राप्त करने हेतु विश्व व्यापार ने कुछ कार्य सुनिश्चित किए है-
  1. WTO ने कुछ समझौते के प्रशासक के रूप में ।
  2. व्यापारिक बातचीत के लिए फोरम के रूप में ।
  3. व्यापारिक मतभेदों को सम्भालना एवं हल करना  ।
  4. राष्ट्रीय व्यापारिक नीतियों में परिवर्तन एवं उन्हें सुचारू रूप से लागू करना ।
  5. सदस्य देशों की व्यापारिक नीतियों को तकनीकी एवं ट्रेनिग कार्यक्रमों की सहायता से सुचारू बनाना ।
  6. विकासशील देशों को तकनीकी एवं कुशल सहायता मुहैया करना ।
  7. अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के मध्य समन्वय स्थापित करन ।
  
WTO के कुछ सिद्वांत है -
  विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत लगभग सभी तरह की वस्तुओं,सेवाओं एवं कृषि संबंधित वस्तुओं के व्यापारी समझौतों को शामिल किया जाता है -
  • गैर विभेदात्मक- इस सिद्वांत की मूल धारणा most favoured nation की रही है जिसमें यह कहा गया है कि अगर कोई देश अन्य देश में उत्पादित किसी भी वस्तु पर कोई लाभ,समर्थन या सुविधा प्रदान करता है तो यह लाभ, समर्थन या सुविधा स्वतः और तुरन्त इस वस्तु के उत्पादक अन्य सभी सदस्य देशों को बिना शर्त प्राप्त हो जाएगी । 
  • परस्परता- इस सिद्वांत के अनुसार एक देश द्वारा दी गई छूट सुविधा दूसरे देश को समान रूप से मिलनी चाहिए ताकि उनके भुगतानों से ज्यादा अन्तर न हो सके । यह सुविधा उन विकासशील देशों को भी मिलनी चाहिए जो भुगतान संतुलन के संकट का सामना कर रहे है । 
  • पारदर्शीता- इस सिद्वांत के अनुसार सभी सदस्य देशों में लागू घरेलू व्यापार नीतियों में पारदर्शिता होनी चाहिए । जिससे बाजार में प्रतियोगिता के वातावरण को बढावा मिल सके ।
  WTO और भारत
भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य देश है तथा विकासशील देशों के समूह को प्रस्तुत करता है, इसलिए कुछ प्रमुख समझौते जो कि भारत द्घारा हस्ताक्षरित किए गए है-
  1. टैरिफ एवं नान टैरिफ अवरोधों में कमी- इस समझौते के अंतर्गत विनिर्माण वस्तुओं के संदर्भ में ऊॅची टैरिफ दरों को समन्वय तरीके से कम किया जाए तथा परिणामात्मक प्रतिबंधों को हटा लिया जाए, जिससे दीर्घकाल में प्रतियोगी वातावरण विश्व  व्यापार में स्थापित हो सके । 
  2. व्यापार संबंध निवेश उपाय- इस समझौते के अनुसार मेजबान देश को विदेशी निवेश एवं घरेलू निवेश की विभेदात्मक नीतियों को दूर करना चाहिए अर्थात सभी देशों के मध्य मुक्त् विदेशी निवेश नीतियों का पालन होना चाहिए ।
  3. व्यापार संबंध बौधिक (TRIPS)- भारत के दृष्टिकोण से अत्यन्त चिन्ता का विषय वाला क्षेत्र है । उरूग्वे दौर मे विकसित देशों ने इन अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कडी शर्तों  को विकासशील देशों पर थोपा है । इसका उद्वेश्य विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को  लाभ पहुॅचाना है । भारत के 1970 पेटेंट एक्ट के आधीन औषधियो पर केवल प्रक्रिया पेटेंट लेने की जरूरत होती थी,अर्थात किसी भी भारतीय कम्पनी के लिए केवल इतना काफी था कि वह कोई औषधि बनाने की अपनी प्रक्रिया या रीति विकसित करे और फिर उस पर पेटेंट ले ले । फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादन वही कंपनीयॉ कर पाएगी जिन्हें उनका उत्पाद पेटेंट प्राप्त् हो, क्योंकि उत्पाद पेटेंट अधिकार विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है इसलिए इसका अर्थ यह है कि यही कम्पनीयॉ उत्पाद पेटेंट वाली औषधियो का उत्पादन कर सकेगी फलस्वरूप इससे भारतीय औषधि उत्पादक इकाईयों काे गहरा झटका लगेगा तथा बहुत सी महत्वपूर्ण दवाईयों की कीमते बढ जाएगी और गरीब आदमी की पहुॅच से औषघियॉ बाहर हो जाएगी, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिेेकूल प्रभाव पडेगा ।
  4. कृषि पर- इस समझौते के अंतर्गत सभी सदस्य देशों को बाजार पहुॅच,निर्यात सहायता,सरकारी सहायता को कृषि वस्तुओं के संदर्भ में कम करना होगा ताकि विश्व व्यापार मुक्त एवं प्रतियोगी वातावरण में आगे बढ सके, जिसके फलस्वरूप भारतीय कृषि वस्तुओं को विदेशी बाजार प्राप्त हो सके एवं वस्तुअों की गुणवक्ता बढ सके ।
     5.बहु फाईबर- WTO के विशेषज्ञों का मानना है कि 1 जनवरी 2005 में बहु फाईबर समझौते के समाप्त होने से विकासशील देशों को बहुत लाभ मिलेगा, क्योंकि भारत कपडों का काफी निर्यात करता है, जिससे उसे विकसित देशों का एक बडा बाजार मिल जायेगा, परंतु भारत को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना होगा  । इसलिए भारत को अन्य देशों जैसे चीन, वियतनाम, पाकिस्तान,बांग्लादेश, इंडोनेशिया और मलेशिया आदि के वस्त्रा उद्योगो की तुलना में उत्पाद की किश्म या गुणवत्ता एवं लागत को प्रतियोगी बनाना होगा । संभवतः कोट मुक्त वातावरण में सबसे अधिक लाभ चीन को मिलेगा, क्योंकि वह अपेक्षाकृत अधिक प्रतियोगी है।


           भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में WTO के अन्तर्गत यह उम्मीद की जाती है कि वस्त्र उद्योग, चपडा क्षेत्र, टेक्सटाइल क्षेत्र, खाद्य क्षेत्र, पेय एवं तम्बाकू आदि क्षेत्रों में उत्पादन एवं निर्यात विकास की प्रचुर संभावनाऍ निहित है । हालाकि बदलते वातावरण में जिसमें प्रतियोगी एवं मुक्त बाजार में हमें नई चुनौतियों को पारदर्शीता से तथा विकासशील देशों के संदर्भ में पुनः विचार करते हुए गम्भीरता से दृष्टि डालने की आवश्यकता है ।




Thursday, 16 March 2017

भारत की पहली औद्योगिक क्राति

      भारत की पहली औद्योगिक क्राति
                            




1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के सम्मुख अनेक चुनौतियॉ जैसे-व्यापक गरीबी, खाद्यान्न की कमी, स्वास्थ्य सुरक्षा इत्यादि जिस पर अधिक ध्यान देना आवश्यक था । इसके अतिरिक्त उद्योग,आधारभूत संरचना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी ,उच्च शिक्षा आदि  । इन सभी क्षेत्रों के विकास के लिए अत्यधिक पूॅजी निवेश की आवश्यकता थी, समय की मॉग थी कि अर्थव्यवस्था का विकास हो  । इसी को ध्यान में रखते हुए 8 अप्रैल 1948 को भारत की पहली औद्योगिक नीति लागू की गई । इस नीति के निम्नलिखित प्रावधान थे-
  1. भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित होगी अर्थात इस नीति से ही भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप मिश्रित अर्थव्यवस्था होगा । 
  2. कुछ महत्वपूर्ण उद्यागो को केंद्र सूची में रखा गया जैसे- कोयला ,पॉवर , रेल, नागरिक उडड्न , अस्त्र एवं  युद्घोपकरण , रक्षा इत्यादि ।
  3. कुछ अन्य उद्योगो मिश्रित राज्य सूची में रखा गया जैसे- कागज , औषधि, कपडा, साइकिल, रिक्शा, दो पहियों वाले वाहन इत्यादि  ।
  4. वो उद्योग जो केन्द्रीय तथा राज्य सूची में शामिल नही थे अर्थात वे उद्योग जो निजी क्षेत्र के निवेश के लिए रखा गया, जिसमें कई के लिए अनिवार्य लाइसेंस का प्रावधान था ।
  5. 10 वर्ष उपरांत नीति की समीक्षा का प्रावधान ।

Wednesday, 15 March 2017

हरित क्रांति

हरित क्रांति














1960  के दशक के आरम्भिक चरण में कूषि में कुछ नए तकनीको की शुरआत की गई, जो विश्वभर में हरित क्रांति के नाम से प्रसिद्व  हुयी । इन तकनीको का प्रयोग पहले गेहॅू की खेती पर तथा दूसरे दशक में धान की खेती के लिए किया गया । इन तकनीको के द्वारा खाद्यान्न उत्पादन में क्रांति आई तथा उत्पादकता स्तर में 250%  तक की बढोत्तरी हुई । हरित क्रांति के पीछे सबसे बडा हाथ जर्मन कूषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग का था जो 1960 के दशक में मैक्सिको में अनुसंधान किया । भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में कूषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन को कहा जाता है ।

  हरित क्रांति के घटक जो निम्नलिखित है-
  1. उन्नत किस्म के बीज- हरित क्रांति में जिन बीजो का प्रयोग किया गया उन्हें बौनी किस्म का बीज कहा जाता है । उन बीजो से उत्पादन अधिक होता है दूसरे बीजो के मुकाबले ।ये बीज प्रकाश संश्लेषण रहित थे ।
  2. रासायनिक उर्वरक - इन उन्नत बीजो की उत्पादकता तभी बढाया जा सकता था जब इन्हें उचित पोषक तत्व  मिले अर्थात रासायनिक उर्वरक जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश की सामुचित आपूर्ति कि जाए । इन बीजो पर परंपरागत वानस्पतिक खाद पर्याप्त नही थी । 
  3. सिचाई- उर्वरको को घोलने तथा फसलों के नियमित विकास के लिए समयानुसार सिंचाई आवश्यक होती है । इन बीजो को अन्य बीजो की तुलना में ज्यादा सिंचाई की जरूरत पडती है ।
  4. रासायनिक कीटनाशक तथा जीवाणुनाशी- नए बीज वर्तमान देशज किस्मों की अपेक्षा स्थानीय कीडों तथा बीमारियो से कम सुरक्षित थे । इसलिए कीटनाशक व जीवाणुनाशी का उपयोग अच्छी उपज के लिए आवश्यक है ।
  5. रासायनिक खरपतवारनाशक तथा अपतूणनाशक- इसका उपयोग इसलिए आवश्यक है क्येंकि महॅगे उर्वरको की खरपतवार तथा अपूत खपत न कर सके ।
  6. साख, भंडारण, विपणन और वितरण- किसान हरित क्रांति के महॅगे आगत का उपयोग कर सके इसलिए उन्हें सस्ते ऋण की आवश्यकता थी । जिन क्षेत्रों में नए किश्म के बीजो को लाया गया वहां इन सभी चीजो की आवश्यकता थी । भारत में हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि में सभी चीजो की व्यवस्था की गई  या व्यवस्था थी ।
              हरित क्रांति का सभी देशों में सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनो प्रकार से प्रभाव पडा जो निम्नलिखित है-
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव- खाद्यान्न के उत्पादन में बढोत्तरी हुई तथा देश कई खाद्यान्न में आत्मनिर्भर हो गया एवं कुछ खाद्यान्नों को निर्यात भी करने लगा । हरित क्रांति के कारण किसानों की आय में बढोत्तरी भी हुई । किन्तु हरित क्रान्ति से फसल असन्तुलन भी देखने को मिलता है जैसे गेहूॅ एवं चावल का अधिक उत्पादन हआ वही दलहन,तिलहन ,मक्का,जौ इत्यादि का उत्पादन घटा है । इसके अतिरिक्त जलजमाव के कारण मलेरिया से पीडित  व्यक्तियों की संख्या में बढोत्तरी हुई ।
पारिस्थितिकीय प्रभाव- हरित क्रान्ति का सबसे विध्वंसकारी प्रभाव पारिस्थतिकीय या पर्यावरण में देखने को मिलता है । इसके अंर्तगत-
  1. निम्नीकूत मिट्टी उर्वरता- बार-बार एक ही फसल पद्वति के कारण मिट्टी की उर्वरता लगातार नष्ट हो रही थी या हांस हो रहा था ।
  2. जल स्तर का घटना- हरित क्राति के प्रदेशो में जल स्तर तीव्र गति से घटता जा रहा था क्योंकि परंपरागत बीजो की तुलना में HYV बीज सिचाई के लिए कई गुना अधिक जल का प्रयोग करते है जैसे 1 किलो चावल के लिए 5 टन जल की आवश्यकता होती है ।
  3. रासायनिक उर्वरको, कीटनाशको एवं खरपतवारनाशको के अत्यधिक प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है । बरसात के दिनों में ये रासायनिक उर्वरक व कीटनाशी बहकर नदीयों में मिलते है जिससे जल प्रदूषण फैलता है । इस तरह के रासायनो के प्रयोग से बरसात के दिनों में ज्यादा खरपतवार उगते है और उन्हें जहरीले खरपतवार को पशओं के द्वारा खा कर बिमार पड जाते है जिसका मनुष्य के ऊपर भी प्रभाव पडता है ।
  4. खाद्य श्रूंखला में विष का स्तर- भारत की खाद्य श्रूंखला में विष का स्तर अधिक हो गया है तथा यहॉ उत्पादित कोई भी खाद्य-सामग्री मानव उपभोग के लायक नही रही है । क्योंकि रासायनिको के ज्यादा प्रयोग से भूमि,जल तथा वायु प्रदूषण में बढोत्तरी हुई है तथा पूरी खाद्य श्रूंखला में अधिक विषाक्ततता फैल गई है ।
                           निश्चित ही हरित क्राति ने भारत को खाद्यन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया है परन्तु हरित क्राति से होने वाले नुकसान ऑखे खोलने वाले तो है ही साथ इस पर सवाल भी उठाते है कि क्या खाद्यान्न उत्पादन के लिए इस तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुॅचना सही है । अब समय आ गया है कि पर्यावरण हो ध्यान में रख कर हरी हरित क्राति बनाई जाए और अपनाई जाए, जिससे मानव के साथ-साथ जानवरो का भी विकास हो सके ।









राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 भारत सरकार द्वारा अधिसूचित एक कानून है जिसके माध्यम से सरकार का उद्वेय यह सुनिश्चित करना है कि देश में जनसाधारण को खाद्य उपलब्ध हो सके । इस योजना का मुख्य खाद्यन्न उपलब्ध  कराना है ताकि उन्हें खाद्य एवं पोषण की सुरक्षा मिले ।

      राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 विश्व का सबसे बडा कल्याण कार्यक्रम है जिसके निम्नलिखित प्रावधान है-
  1. इस कानून के तहत 75% ग्रामीण एवं 50% शहरी आबादी को रियाती दरो पर खाद्यन्न उपलब्ध कराने का प्रावधान है । इससे देश की लगभग 2/3 जनसंख्या को इसका लाभ मिलेगा ।
  2. इस कार्यक्रम के तहत पात्र परिवारो को 5 किलोग्राम चावल,गेहूॅ व मोटा अनाज क्रमशः 3 रू,2 रू तथा 1रू प्रति किलोग्राम की दर पर मिल सकेगा ।
  3. अत्योदय अन्न योजना में शामिल परिवारो को प्रति परिवार 35 किलोग्राम अनाज का मिलना पहले जैसा जारी रहेगा ।
  4. इस कार्यक्रम में गर्भवती तथा स्त्नपान कराने वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान तथा प्रसव के 6 माह के उपरांत भोजन के अलावा 6000 रू का मातूत्व लाभ मिलेगा ।
  5. 14 वर्ष तक की आयु के बच्चे को पौष्टक आहार मानको के हिसाब से राशन या पका हआ गर्म भोजन प्राप्त करने के अधिकारी है ।
  6. खाद्यान्न अथवा भोजन की आपूर्ति न हो पाने की  स्थिति में, लाभार्थी को खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जाएगा ।
  7. कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अधिनियम में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी सुधार का प्रावधान किया गया । साथ ही सूचना एवं संचार तकनीकी का उपयोग कर एण्ड टू एण्ड कम्युटाइजेशन लाभार्थियो की पहचान के लिए आधार का उपयोग ।
  8. इस अधिनियम में जिला एवं राज्यस्तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान है ।
  9. इस कार्यक्रम के तहत राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग को दंड देने का अधिकार होगा । DGRO का आदेश न मानने वाले अधिकारी को 5000रू तक जुर्माना लगा सकता है ।
  10. इस अधिनियम के तहत पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए भी आवश्यक प्रावधान किए गए है ।
                 राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 में सुधार की आवश्यकता से इनकार नही किया जा सकता है  जिससे इस अधिनियम में पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व को स्थापित किया जा सके । इस अधिनियम में कुछ सुधार का प्रावधान किया गया है-
  • राशन की घर तक पहुॅच सुविधा ।
  • राशन वितरण के एक सिरे से दूसरे सिरे का computerized 
  • पात्र हितग्राहियों की पहचान के लिए आधार का उपयोग ।
  • महिला एवं महिला समूहों के हाथ में राशन दुकान का प्रबंधन ।
  • राशन सामग्री में विविधता ।

NITI AAYOG(National Institution for Transforming India)














 नीति आयोग क्या है- नीति आयोग भारत सरकार द्वारा  गठित एक नया संस्थान है जिसे योजना आयोग के स्थान पर बनाया गया है । नीति आयोग की स्थापना 1 जनवरी 2015 को थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करने व निर्देशात्मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करने के लिए की गई । नीति आयोग केन्द्र और राज्य स्तरो पर सरकार को नीति के प्रमुख कारको के संबंध में प्रासंगिक महत्वपूर्ण एवं तकनीकी परामर्श उपलब्ध कराएगा ।

आयोग की संरचना-
      नीति आयोग का गठन इस प्रकार होगा-
  1. भारत के प्रधानमंत्री इसके अघ्यक्ष होगे ।
  2. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा संघीय क्षेत्रों के उप-राज्यपाल ।
  3.  विशिष्ट मुद्वो  और ऐसी आकस्मिक मामले जिसका संबंध एक से अधिक राज्यो या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए क्षेत्रीय परिषद गठित की जाएगी । भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदो की बैठके होगी और इनमें से संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल शामिल होगे । इस परिषद की अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष करेगे । 
  4.  संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत लोग,विशेष आमंतित्र के रूप में प्रधानमंत्री  द्वारा नामित किए जाऐगे । 
  5.  पूर्णकालिक संगठनात्मक ढांचे में-
   a. प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक उपाघ्यक्ष होगा ।
   b. सभी पूर्णकालिक सदस्य होगे ।
   c. अंशकालिक सदस्य अधिकतम 2, जो कि शीर्ष विश्वविघालयों शोध संस्थओं आदि से पदेन सदस्य चक्रीय आधार पर नियुक्त होगे । 
   d. पदेन सदस्य- अधिकतम 4 सदस्य जो कि मंत्रिपरिषद में से प्रधानमंत्री द्वारा नामित किए जाऍगे ।
   e. मुख्य कार्यकारी अधिकारी - भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी को निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री  द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।
   f. सचिवालय आवश्यकता के अनुसार ।

          नीति आयोग के कार्य या उद्देय -
  1.  राष्ट्रीय उद्देश्यो को दूष्टिगत रखते हुए राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं , क्षेत्रों और रणनीतियों का एक साझा दूष्टिकोण विकसित करेगा । नीति आयोग का विजन बल प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय एजेडा का प्रारूप उपलब्ध कराना है ।
  2. केन्द्र,राज्यों का सच्चा मित्र-केन्द्र राज्यों को उनकी अपनी चुनौतियों का सामना करने में सहायता प्रदान करेगा,जो अनेक माध्यमों से संभव होगा,जैसे मंत्रालयों के साथ समन्वय करके, केन्द्र में उनके विचारो को स्थापित करके,तथा परामर्श सहयोग तथा क्षमता निर्माण के द्वारा ।
  3. विकेन्दित नियोजन- ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करेगा और इसे सतह-उर्ध्व मॉडल या नीचे से उपर की ओर के रूप में विकसित करेगा ।
  4. आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि जो क्षेत्र विशेष रूप से सौपे गए है उनकी आर्थिक कार्य नीति और नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को शामिल किया गया है ।
  5. हमारे समाज में उन वर्गो पर विशेष रूप से ध्यान देगा जिन तक आर्थिक प्रगति उचित प्रकार से नही पहुॅच सही है या लाभाविन्त नही हो पाये है ।
  6. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञो के एक सहयोगी समुदाय के माध्यम , सहयोगात्मक समुदाय के जरिए ज्ञान, नवाचार उघमशीतला सहायक प्रणाली बनाएगा ।
  7. नीति आयोग विकास के एजेडें के कार्यान्वयन में तेजी लाने के क्रम में अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दो के समाधान के लिए मंच प्रदान करेगा ।
  8. कार्यक्रमों और नीतियो के क्रियान्वयन के लिए प्रौघोगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर जोर ।
  9. अत्याधुनिक कला संसाधन केन्द्र बनाना जो सुशासन तथा सतत् और न्यायसंगत विकास की सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली पर अनुसंधान करने के साथ-साथ हितधारको तक जानकारी पहुचाने में भी मदद करेगा ।
  10.  महत्वपूर्ण हितधारको तथा समान विचारधारा वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक और साथ ही साथ शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को परामर्श एवं प्रोत्साहन देगा ।
  11. यह निकाय नीति एवं कार्यक्रम को डिजाइन करने में केन्द्र एवं राज्यों को आंतरिक परामर्शिता प्रदान करेगा जिनमें विकेन्द्रीकरण, लचीलापन तथा परिणामोन्मुखता पर विशेष बल देगा ।
  12. सरकार में क्षमता निर्माण तथा प्रौघोगिकी अद्यतन वैश्विक प्रवूतियो तथा प्रबंधकीय एवं तकनीकी जानकारी पर आधारित होगा ।
      











 

Tuesday, 14 March 2017

प्रकृति संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष : Worldwide Fund for Nature – WWF

प्रकृति संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष : Worldwide Fund for Nature – (WWF)
 मुख्यालय: – स्विट्जरलैंड में।
  गठन-         प्रकृति संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष (Worldwide Fund for Nature-WWF) का गठन वर्ष 1961 में हुआ तथा उसी वर्ष इसका पंजीकरण एक परोपकारी (Charity) संस्था के रूप में हुआ।
यह पर्यावरण के संरक्षण, अनुसंधान एवं रख-रखाव संबंधी मामलों पर कार्य करता है। पूर्व में इसका नाम विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife fund) था।
उद्देश्य-
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
  • आनुवंशिक जीवों और पारिस्थितिक विभिन्नताओं का संरक्षण करना।
  • यह सुनिश्चित करना कि नवीकरण योग्य प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पृथ्वी के सभी जीवों के वर्तमान और भावी हितों के अनुरूप हो रहा है।
  • प्रदूषण, संसाधनों और उर्जा के अपव्ययीय दोहन और खपत को न्यूनतम स्तर पर लाना।
  • हमारे ग्रह के प्राकृतिक पर्यावरण के बढ़ते अवक्रमण को रोकना तथा अंततोगत्वा इस प्रक्रिया को पलट देना।
  • एक ऐसे भविष्य के निर्माण में सहायता करना, जिसमें मानव प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके रहता है।
कार्यक्रम-
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ विश्व का सबसे बड़ा और अनुभवी स्वतंत्र पर्यावरण संरक्षण संगठन है। राष्ट्रीय संगठनों और कार्यक्रम कार्यालयों के वैश्विक नेटवर्क के साथ इसके 5 मिलियन से अधिक समर्थक हैं। राष्ट्रीय संगठन पर्यावरण कार्यक्रमों को संचालित करते हैं तथा डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण कार्यक्रम को वित्तीय सहायता तथा तकनीकी सुविज्ञता प्रदान करते हैं। कार्यक्रम कार्यालय डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के क्षेत्रीय कार्यों को प्रभावित करते हैं तथा राष्ट्रीय एवं स्थानीय सरकारों को परामर्श देते हैं ताकि भावी पीढ़ी प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके रह सके।
  • इसका अधिकतर काम तीन बायोम का संरक्षण करना है जो विश्व के सर्वाधिक विविधता संपन्न क्षेत्र है: वन, ताजा जल पारिस्थितिकी तंत्र, और महासागर एवं तट। अन्य मामलों में, यह संकटापन्न प्रजातियों, प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन पर भी चिंतित है।
  • डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, जूलोजिकल सोसायटी ऑफ लंदन के साथ मिलकर लिविंग प्लेनेट इंडेक्स का प्रकाशन करता है।
  • अपनी पारितंत्रीय पदचिन्हों के आकलनों के साथ, इंडेक्स का इस्तेमाल द्विवार्षिक लिविंग प्लेनेट प्रतिवेदन को तैयार करने में किया जाता है जो मानवीय गतिविधियों के विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव का अवलोकन प्रस्तुत करता है।
  • वर्ष 2008 में, ग्लोबल प्रोग्राम फ्रेमवर्क (जीपीएफ) के माध्यम से, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ अब अपने प्रयासों को 13 वैश्विक पहलों- अमेजन, आर्कटिक, चीन, जलवायु एवं ऊर्जा, तटीय पूर्वी अफ्रीका, प्रवाल त्रिभुज, वन और जलवायु, अफ्रीका का हरित प्रदेश, बोर्नियो, हिमालय, बाज़ार रूपांतरण, स्मार्ट मत्स्ययन और टाइगर-पर केंद्रित कर रहा है।

    जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)


     जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) 


     












    जलवायु परिवर्तन और राष्ट्रीय मिशन
    जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) को औपचारिक रूप से 30 जून 2008 को लागू किया गया। यह उन साधनों की पहचान करता है जो विकास के लक्ष्य को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही, जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लाभों को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय कार्य योजना के कोर के रूप में आठ राष्ट्रीय मिशन हैं। वे जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण, ऊर्जा दक्षता एवं प्रकृतिक संसाधन संरक्षण की समझ को बढावा देने पर केंद्रित हैं।
    आठ राष्ट्रीय मिशन हैं:
    • राष्ट्रीय सौर मिशन (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा (एमएनआरई) मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • परिष्कृत ऊर्जा कुशलता के लिए राष्ट्रीय मिशन (विद्युत मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन(शहरी विकास मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • राष्ट्रीय जल मिशन(जल संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन(विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • हरित भारत मिशन(पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • धारणीय कृषि मिशन (कृषि मंत्रालय के अन्तर्गत)
    • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन(विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अन्तर्गत)
    राष्ट्रीय सौर मिशन
    जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सौर मिशन को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस मिशन का उद्देश्य देश में कुल ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा के अंश के साथ अन्य नवीकरणीय साधनों(परमाणु ऊर्जा ,पवन ऊर्जा बायोमास ऊर्जा आदि) की संभावना को भी बढ़ाना है। यह मिशन शोध एवं विकास कार्यक्रम को आरंभ करने की भी माँग करता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग को साथ लेकर अधिक लागत-प्रभावी, सुस्थिर एवं सुविधाजनक सौर ऊर्जा तंत्रों की संभावना की तलाश करता है।
    मिशन के लक्ष्‍य इस प्रकार हैं –
    1. 2022 तक 20 हजार मेगावाट क्षमता वाली-ग्रिड से जुड़ी सौर बिजली पैदा करना,
    2. 2022 तक दो करोड़ सौर लाइट सहित 2 हजार मेगावाट क्षमता वाली गैर-ग्रिड सौर संचालन की स्‍थापना
    3. 2 करोड़ वर्गमीटर की सौर तापीय संग्राहक क्षेत्र की स्‍थापना
    4. देश में सौर उत्‍पादन की क्षमता बढ़ाने वाली का अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण और
    5. 2022 तक ग्रिड समानता का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए अनुसंधान और विकास के समर्थन और क्षमता विकास क्रियाओं का बढ़ावा शामिल है।
    परिष्कृत ऊर्जा कुशलता के लिए राष्ट्रीय मिशन—–
    भारत सरकार ने ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने हेतु पहले से ही कई उपायों को अपनाया है। इनके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य-योजना के उद्देश्यों में शामिल हैं:
    • बड़े पैमाने पर उर्जा का उपभोग करने वाले उद्योगों में ऊर्जा कटौती की मितव्ययिता को वैधानिक बनाना एवं बाजार आधारित संरचना के साथ अधिक ऊर्जा की बचत को प्रमाणित करने हेतु एक ढाँचा तैयार करना ताकि इस बचत से व्यावसायिक लाभ लिया जा सके।
    • कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा-दक्ष उपकरणों/उत्पादों को वहनयोग्य बनाने हेतु नवीन उपायों को अपनाना।
    • वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक तंत्र का निर्माण तथा भविष्य में होने वाली ऊर्जा बचतों के दोहन हेतु कार्यक्रमों का निर्माण और इसके लिए सरकारी-निजी भागीदारी की व्यवस्था करना।
    • ऊर्जा दक्षता बढ़ाने हेतु ऊर्जा-दक्ष प्रमाणित उपकरणों पर विभेदीकृत करारोपण सहित करों में छूट जैसे वित्तीय उपायों को विकसित करना।
    सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
    इस मिशन का लक्ष्य निवास को अधिक सुस्थिर बनाना है। इसके लिए तीन सूत्री अभिगम पर जोर दिया गया है:
    • आवासीय एवं व्यावसायिक क्षेत्रकों के भवनों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
    • शहरी ठोस अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन,
    • शहरी सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना।
    राष्ट्रीय जल मिशन
    राष्ट्रीय जल मिशन  का लक्ष्य जल संरक्षण, जल की बर्बादी कम करना तथा एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के द्वारा जल का अधिक न्यायोचित वितरण करना है। राष्ट्रीय जल मिशन, जल के उपयोग में 20% तक दक्षता बढ़ाने हेतु एक ढाँचा का निर्माण करेगा। यह वर्षाजल एवं नदी प्रवाह की विषमता से निबटने हेतु सतही एवं भूगर्भीय जल के भंडारण, वर्षाजल संचयन तथा स्प्रिंकलर अथवा ड्रिप सिंचाई जैसी अधिक दक्ष सिंचाई व्यवस्था की सिफारिश करता है।
    सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
    इस कार्यक्रम में शामिल है- स्थानीय समुदाय, विशेषकर पंचायतों का पारिस्थितिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु सशक्तीकरण करना। यह राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 में वर्णित निम्नलिखित उपायों की पुष्टि करता है:
    • पर्वतीय पारिस्थिकीतंत्र के सुस्थिर विकास हेतु भूमि उपयोग की उचित योजना एवं जल-छाजन प्रबंधन नीति को अपनाना
    • संवेदनशील पारिस्थिकी तंत्र को नुकसान से बचाने एवं भू-दृश्यों के संरक्षण हेतु आधारभूत संरचना के निर्माण की सर्वोत्तम नीति अपनाना
    • जैव कृषि को बढ़ावा देकर फसलों की पारंपरिक किस्मों की खेती एवं बागवानी को प्रोत्साहित करना ताकि किसान मूल्य प्रीमियम का लाभ प्राप्त कर सकें
    • स्थानीय समुदायों को आजीविका के बेहतर साधन उपलब्ध हो सकें इस हेतु सुस्थिर पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु उचित नीतियों का निर्माण एवं बहुल-भागीदारी को सुनिश्चित करना
    • पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटकों के आवागमन को नियंत्रित करने के उपायों पर बल देना ताकि पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की वहन क्षमता प्रभावित न हों
    • विशिष्ट “अतुलनीय मूल्यों” के साथ कुछ पर्वतीय क्षेत्रों के लिए सुरक्षात्मक रणनीति का विकास करना।
    हरित भारत मिशन
    इस मिशन का लक्ष्य कार्बन सिंक जैसे पारिस्थितिकीय सेवाओं को बढ़ावा देना। यह 60 लाख हेक्टेयर भूमि में वनरोपण के लिए प्रधानमंत्री का हरित भारत अभियान का हिस्सा है ताकि देश में वन आवरण को 23% से बढ़ाकर 33% करना है। इसका कार्यान्वयन राज्यों के वन विभाग द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से ऊसर वन भूमि पर किया जाना है। ये समितियाँ समुदायों द्वारा सीधी कार्यवाही को प्रोत्साहित करेंगी।
    धारणीय कृषि मिशन
    इसका लक्ष्य फसलों की नई किस्म, खासकर जो तापमान वृद्धि सहन कर सकें, उसकी पहचान कर तथा वैकल्पिक फसल स्वरूप द्वारा भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला बनाना है। इसे किसानों के पारंपरिक ज्ञान तथा व्यावहारिक विधियों, सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव तकनीकी के साथ-साथ नवीन ऋण तथा बीमा व्यवस्था द्वारा समर्थित किया जाना है।
    जलवायु परिवर्तन हेतु ज्ञान मिशन
    यह मिशन, शोध तथा तकनीकी विकास के विभिन्न क्रियाविधियों द्वारा सहभागिता हेतु वैश्विक समुदाय के साथ कार्य करने पर बल देता है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन से संबंधित समर्पित संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों के नेटवर्क तथा जलवायु-शोध कोष द्वारा समर्थित इसके स्वयं का शोध एजेंडा होगा। यह मिशन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण हेतु नवीन तकनीकियों के विकास के लिए निजी क्षेत्र के उपक्रमों को भी प्रोत्साहित करेगा।
    मिशन का क्रियान्वयन
    इन 8 राष्ट्रीय मिशन को संबद्ध मंत्रालयों द्वारा संस्थाकृत किया जाना है तथा इसे अंतर-क्षेत्रक समूहों द्वारा संगठित किया जाएगा जिनमें संबद्ध मंत्रालयों के अलावा शामिल हैं- वित्त मंत्रालय, योजना आयोग, उद्योग जगत एवं अकादमियों के विशेषज्ञ तथा नागरिक समाज।